विज्ञान एवं तकनीक के महत्व को आज कोई नकार नहीं सकता है। दुनिया के अधिकांशतः लोग, चाहे वे शिक्षित हों अथवा अशिक्षित, किसी न किसी रूप में तकनीकों का उपयोग करते हैं। किंतु सवाल यह उठता है कि विज्ञान और तकनीक के आधुनिक नजरिए को पुराने मजहबी नजरियों के साथ कैसे जोड़ सकते हैं। इस्लाम में पैगम्बर के सामने जो पहला हरूफ प्रकाशित हुआ, वह था– तालीम, जो इस मजहब के आधार स्वरूप इल्म के महत्व को बताती है। इसलिए हम देख रहे हैं कि इस्लामिक मुल्क विज्ञान और तकनीक के माध्यम से किस कदर बदल रहे हैं।
इस्लाम को हमेशा ही मानवता के समक्ष प्रस्तुत एक परिपूर्ण जीवन-यापन के रूप में माना जाता रहा है। इसमें रूहानी, आर्थिक, सामाजिक, न्यायिक और सियासी विषयों सहित जिंदगी के प्रत्येक क्षेत्र के लिए नियम और दिशा निर्देश शामिल हैं। इसलिए यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस्लाम में मानव जाति के कार्यों को काबू करने तथा ठीक-ठाक जीवन जीने की पूरी व्यवस्था निहित है। एक मजहब के रूप में इस्लाम ने हमेशा से ही अपने पेरोकारों को मजहबी इल्म का खोजी बनने तथा दुनियावी तहजीब मानने के लिए प्रोत्साहित किया है। मजहबी इल्म एवं दुनियावी इल्म के बीच कभी कोई भेद नहीं रहा है, क्योंकि इन दोनों ही प्रकार के इल्म को प्राप्त करना अल्लाह को खुश करने के बराबर है।
तकनीक के वास्तविक उपयोग के संदर्भ में पूरे मुल्क के बहुत से मुसलमान अपनी मजहबी जरूरतों को पूरा करने के लिए आजकल स्मार्ट फोन का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए ये लोग अपने आसपास स्थित मस्जिदों एवं इस्लामिक केन्द्रों का पता लगाने के लिए जीपीएस ट्रेकिंग और लोकेशन आधारित अप्लीकेशन का प्रयोग करते हैं। ऐसी बहुत सी वेबसाइट हैं, जो कुरान और इसके प्रयोगों के बारे में पूर्ण दिशा-निर्देश प्रदान करती हैं। समाज में दरार डालने के लिए ‘फतवा’ जारी करने वाले कुछ कट्टर इस्लामिक विद्वानों के रूतबे को प्रभावहीन करने के लिए सोशल मीडिया को एक मंच के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। डिजिटल क्रान्ति के कारण आज युवा पीढ़ी मुखर हुई है। अब वे ‘फतवा’ पर प्रश्न पूछ सकते हैं और विचार-विमर्श कर सकते हैं तथा अपना मत भी रख सकते हैं। हमारा फर्ज है कि हम तकनीक का उपयोग विवेकपूर्ण तरीके से करें और सोशल मीडिया पर दिखाए जाने वाली नफरत, आतंकवाद और गलत खबरों से जागरूक रहें।