समय गुजरते–गुजरते हमारा समाज मजहव, जाति, रंग, नस्ल आदि के मुद्दों पर अलग–अलग वर्गों में बंट गया है। हम हमेशा खुद को दूसरों से खुदपरस्ती, खुद मुख्तारी और मजहवी अलगाववाद की वजह से खुद को औरो से अलग और खुसूसी मानने लगते हैं। हालांकि यह खाई आपसी मिलन, साझेदारी के जज्बे से पाटा जा सकता है और आपसी खाई ताल–मेल से भरी जा सकती है। अल्लाह अपने बनाए इंसानों को साथ–साथ और मुहब्बत से रहते हुए देखना चाहता है। पवित्र कुरान कहती है कि सारी मानव जाति आदम और हव्वा से शुरू हई है। यह समझने वाली बात है कि कोई क्यों खुद को दूसरों से सिर्फ इस बात के लिए अलग समझेगा क्योंकि उसकी पूजा करने की विधि, खान–पान का तरीका तथा विरासत दूसरों से अलग है। मजहव से परे सभी पवित्र किताबें (भगवत गीता, कुरान और बाइबल) एक सुर में कहती है कि सभी को दूसरों से उतना ही प्रेम करना चाहिए जितना वह खुद से करता है। हिन्दू धर्म की किताबें ‘एकमेव अद्वितीय ब्रह्म सर्व देव नमस्कारः केशवं प्रति गच्छति’ पर जोर देती है जिसका मतलब है “भगवान एक ही है, चाहे उसके किसी आकार रूप की पूजा करे, अन्त में उसे ही पहुंचती है”। इसी प्रकार कुरान कहती है की अल्लाह एक है और उसका कोई आकार/तस्वीर नहीं है तथा वह अपनी दया सभी जीवों पर बिना किसी भेदभाव के बरसाता है। दुर्भाग्य से हम इन पवित्र किताबों को ठीक से समझ नहीं पाए जिसकी वजह से दुनिया में समाज के इतने टुकड़े हो गए। अगर कोई व्यक्ति बहुत अमीर बन जाता है तो वह बहुत खुश होता है लेकिन अगर कोई दूसरा व्यक्ति अमीर बन जाए तो उसे यह बात हजम नहीं होती है। ऐसा केवल उसकी जलन और घमण्ड की वजह से होता है। इस समस्या का केवल एक ही हल है, सभी इंसानों को अपना ही खून समझें और सभी से वैसी मुहब्बत करो जैसा आप अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से करते हो। यह सूफीवाद का भी सार है जो कहता है कि अली इंसान (अच्छा इंसान) और अल कामिल (पूरा इंसान) ही सच्चे इंसान से एक जैसा व्यवहार कर सकता है। हमें चाहिए कि भगवान को खुद में बसा लें और न केवल रूह को पवित्र करे बल्कि समाज की भलाई के लिए भी हमेशा तैयार रहें। अल्लाह दुनिया में अमन, मुहब्बत और भाईचारे को बनाने/मजबूत करने/फैलाने की हमारी कोशिशों में मदद करता है और करता रहेगा।
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