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आयशा आत्‍महत्‍या प्रकरण: मुस्लिम समुदाय में सामाजिक गिरावट

इस्‍लाम मजहब अच्‍छा जीवन जीने के लिए दिशा-निर्देश और रोड-मैप तय करता है जो पूरी मानवता के लिए मार्गदर्शक का कार्य करते हैं। वे सभी कार्य जो हजरत मोहम्‍मद साहब ने किए, उनमें तालीम ने इस्‍लामिक-समाज में एक महत्‍वपूर्ण व केन्‍द्रीय रोल अदा किया। वे चाहते थे कि मुसलमान पढ़े व लिखें। उन सभी मसलों में, जिनसे मुस्लिम समाज आज जूझ रहा है, सामाजिक-कठिनाइयॉं सबसे जटिल हैं। सामाजिक व्‍यवस्‍था को सहेजने की जिम्‍मेदारी उस समाज के प्रत्‍येक सदस्‍य पर होती है जो स्‍वतंत्रता से एक ही प्रकार के सिद्धांत और प्रथाओं का पालन करता है।

हे अल्‍लाह! मुसलमानों की सामाजिक व्‍यवस्‍था आज चरमरा रही है। प्रत्‍येक मनुष्‍य इस्‍लाम में मौजूद कायदे-कानूनों का धड़ल्‍ले से उल्‍लंघन कर रहा है। हाल ही का उदाहरण गुजरात में रहने वाली 23 वर्षीया आयशा का है जिसका निकाह राजस्‍थान में रहने वाले आरिफ़ खान नाम के आदमी से हुआ था। उस लड़की ने अपने फोन पर आखिरी पैगाम रिकॉर्ड करते हुए कहा था कि उसके पति ने यह कहा था कि वह दहेज लाए या फिर आत्‍महत्‍या कर ले। यह वीडियों-क्लिप चारों तरफ विभिन्‍न सोशल-मीडिया प्‍लेटफार्मों पर ‘वायरल’ हो गया। आयशा इस वीडियों में हंसकर यह कहते हुए दिखाई दी कि ‘अन्‍तत: वह अल्‍लाह से मिलेगी और पूछेगी कि उससे कहां पर गलती हुई थी।‘ आगे उसने अपने पिताजी से भी प्रार्थना करते हुए कहा कि वे उसकी ससुराल के खिलाफ केस वापस ले लें क्‍योंकि वह उन्‍हें मुश्किल में नहीं डालना चाहती। उस लड़की का यह ‘पैगाम’ दिल दहलाने वाला है जो ख्‍वातीनों द्वारा उनकी रोजमर्रा की जिंदगी में पेश आने वाली कठिनाइयों, सामाजिक बुराइयों और उत्‍पीड़न का बखान करता है।

आयशा द्वारा की गई आत्‍महत्‍या हमारे समाज और सामुदायिक ढांचे के सड़ने व इसमें हुई गिरावट को स्‍पष्‍ट रूप से दर्शाती है। आयशा जैसे अनेकों औरतें हैं जिनके मामलों का मीडिया में कोई जिक्र नहीं किया जाता जिसकी वजह समाज तथा परिवार का दबाव एवं सामाजिक कलंक लगने का डर होता है। अत: यह हम सबकी नैतिक जिम्‍मेदारी है कि इस ‘दहेज प्रथा’ को जड़ से खत्‍म करें व औरतों के पारिवारिक-अलगाव को बढ़ावा देंने वाली प्रथाओं को रोकें जो ऐसी औरतों को आत्‍महत्‍या कर अपनी जीवन-लीला समाप्‍त करने के लिए उत्‍प्रेरित करती हैं।

भारतीय मुसलमानों को इस तरह की प्रथाओं के प्रति अधिक सावधान होने की जरूरत है और इन मसलों को सामुदायिक स्‍तर पर संवैधानिक-कानूनों व इस्‍लामिक-मजहबीग्रंथों के संदर्भों की सहायता से सुलझाएं। इस्‍लाम, दहेज लेने व औरतों के खिलाफ पारिवारिक हिंसा को नकारता है और आगे चलकर औरतों को एक सम्‍मानजनक स्‍तर देने की सिफारिश करता है। इसके अलावा, यह औरतों व आदमियों, दोनों के लिए लाजिमी करता है कि वे अपने जीवन के नाजुक संतुलन को बनाएं व उसका आनंद उठाएं तथा सामाजिक तानेबाने को मजबूती प्रदान करें।

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