ख़ुदा ने आदमी और औरत को बराबरी का दर्जा दिया है और हर हाल और हर काम में एक दूसरे के लिए जरूरी बताया है। कुरान मज़िद कहता है ‘ओ ! आदम जात, ख़ुदा से डरो’, जिसने तुम्हें एक शख्सियत से बनाया और फिर आदमी और औरत के रूप में अलग करके दुनियावी कामों के लिए फैला दिया। (अन निशा/औरतों के लिए बनाए अध्याय में) और जो कोई भी सच्चा काम करेगा चाहे वह औरत हो या आदमी और सच्चा मुमिन होगा, अल्लाह उसको यहाँ और वहाँ दोनों जगह रहमत बखसेगा जो उनके लिए सबसे बढ़िया हों। (अन.नाहीः97).
इस्लाम में औरतों का हक चाहे वह कमाया हुआ हो या खानदानी हिस्से का हो उसे ही मिले, ऐसा पक्का करता है। पैगम्बर मोहम्मद ने कहा था, वास्तव में औरतें आदमी की सच्ची साथी है और इसीलिए जब कभी फैसले की घड़ी आती है दोनों को बराबरी के दर्जे से तौला और देखा जाना चाहिए। कुरान ख्वातिनों की तालीम और तरक्की का पुरजोर हामी है। ढेरों औरतों का जिक्र है, जैसे कि मरियम (जीसस की माँ) बल्कीस (शीवा की मल्लिका) जो अपने अक्लमंदी के लिए जानी जाती थी। ख़दिजा (पैगम्बर मोहम्मद की पहली बीबी और पहली मोमिन) और फ़ातिमा (पैगम्बर की बेटी और हजरत अली की बीबी) जो हमेशा अपने ख़ाविन्द और पिता के साथ खड़ी थी। जिनके नाम इस्लाम में औरतों के मिलने वाली आज़ादी और इस्तगवाली की दशदीग करता है। इस्लाम हमेशा से औरतों के लिए हौसला अफ़जाई, तरक्की और आजादी के सभी दरवाजे खुले रखने पर जोर देता है। सही मायनों में इस्लाम में आले की खोज और शुरूआत एक औरत ने पैगम्बर मोहम्मद के लिए की थी जो कि बाद में मज़हब का एक पक्का हिस्सा हो गया।
अब जबकि ख्वातिने जिंदगी की हर दौड़ में आगे आ रही है, आदमियों की जिम्मेदारी है कि औरतों के हक और इज्जत को पक्का करे जिससे की उन्हें ख़ुदा की नियामत इस जन्म और इसके बाद भी मिलती रही।