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इस्‍लाम में फ़साद की मनाही

हमारा भारत एक अमन की ज़मीन है और यहॉं के रहने वाले अमन (शांति) को पसंद करते हैं और मुसलमानों को बांटकर नफ़रत फैलाने वाले लोगों को हमें आईना दिखाना चाहिए कि वो हमें बिल्‍कुल अलग-अलग और टुकड़े-टुकड़े नहीं कर सकते क्‍योंकि इस्‍लामी रिवायतें, अमल-तहज़ीब इसकी बिल्‍कुल भी इजाजत नहीं देती। इस्‍लाम में फ़साद की कोई जगह नहीं है, इसके साथ-साथ हमारे मुल्‍क की तहज़ीब व कल्‍चर जो अमन व भाईचारे पर जिसकी बुनियाद है उससे भी फ़साद, अराजकता लड़ाई दूर-दूर तक मेल नहीं खाते हैं।

नबी-ए-मोहतरम सल्‍ललाही अलैह वसललम ने फरमाया था कि एक मुसलमान को साबित क़दम रहना चाहिए और अपने मुल्‍क के कानून पर अमल करना चाहिए। इस्‍लाम के पहले ख़लीफा हज़रत अबू बक्र सिद्दकी ने जो नबी-ए-करीम के दोस्‍त और ससुर भी थे। सियासी (राजनैतिक) फायदे के जंग से मना फ़रमाया और ऐलान किया कि जो मुल्‍क मुसलमानों को पूरी आज़ादी से अपने मज़हब पर अमल करने की इज़ाज़त दे उनसे इस्‍लामी ताकतें जंग न करें बल्कि उन्‍हें अपना दोस्‍त मानें। हमें हमारे गलत नज़रियों ने और गलत (प्रचार व प्रसार) नश्‍रो इशाअत ने बर्बाद कर डाला है। हम पिछड़ते जा रहे हैं इससे बचकर काम करने के लिए कदम बढ़ाया जाए, एक-दूसरे की हमदर्दी का जज्‍़बा (भावना) और इंसाफ की बात को आम करना व इंसाफ के काम को आम करना बड़ी अहम जिम्‍मेदारी है। कुराने करीम के मुताबिक अल्‍लाह इंसाफ का क़याम (स्‍थापित) करना चाहता है और उन्‍हें पसंद करता है जो इंसाफ पसंद हैं। अल्‍लाह फ़साद करने वालों को पसंद नहीं करता क्‍योंकि अल्‍लाह तआला अमन को पसंद फरमाता है।

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