सन् 1947 में भारी खून-खराबे के बाद जब भारत से पाकिस्तान अलग हुआ तो सिंधियों ने अपनी स्वायत्ता की सुरक्षा की उम्मीद में मजहबी आधार पर बना। पाकिस्तान को चुना, जबकि भारत के बड़ी तादात में उर्दू बोलने वाले मुसलमानों ने सिंध प्रांत में बसने को तवज्जों दी। भारत चले जाने के दोषी सिंधी हिन्दुओं द्वारा छोड़ी गई संपत्ति अप्रवासी भारतीय मुसलमानों को दे दी गई, जिन्हें आमतौर पर मुहाजिर के नाम से जाना जाता था। मुहाजिर लफ़्ज का प्रयोग पाकिस्तान सरकार की संस्था ने सभी अप्रवासी भारतीयों की पहचान के लिए किया था।
तभी से ‘मुहाजिर’ लगातार भेदभाव का सामना कर रहे हैं। सन् 1984 में अपने सियासी वजूद के दावे के लिए उनहोंने एक छात्र नेता, अल्ताफ हुसैन की अगुवाई में अपने अधिकारों के दावे के लिए मुहाजिर कौमी मूक्मेंट (एम क्यू एम) की स्थापना की, जो सन् 1987 से होने वाले प्रत्येक चुनाव में शहरी सिंध क्षेत्र में बड़ी जीत हासिल करने का दावा करता है। इसके परिणामस्वरूप इस समुदाय ने जून, 1992 में सेना/पुलिस कार्रवाई के दमन का सामना किया, जिसमें अवैध रूप से कत्लेआम द्वारा हजारों मुहाजिर को यातनाऍं दी गई। सिंधी-मुहाजिर आज भी जदोजहत में हैं तथा दोनों ही खुद के साथ भेदभाव किए जाने और दोषी ठहराए जाने का ठोस आरोप लगाते है।
इसके विपरीत सन् 1947 में बँटवारे के दौरान भारत में रहने का निर्णय लेने वाले मुसलमानों को उनकी मज़हबी आजादी की मुहाफिज कई दस्तूर अकल्यित इख्तियार प्रदान किए गए। पाकिस्तान जाने का निर्णय लेने वाले बहुत सारे मुसलमानों ने भी आजादी के बाद के भारत में ऐसे ही संभावित लक्ष्य के बारे में सोचा तथा एसे पाकिस्तान का हिस्सा बनने में सुरक्षित महसूस किया जो मजहबी आधार पर बना था फिर भी बहुसंख्यक धार्मिक समुदाय का होने के बावजूद पाकिस्तान में मुहाजिर आज भी एक व्यवस्था के तहत शोषण के शिकार हो रहे हैं तथा ‘दोयम दर्जे’ के वाशिंदा के रूप में रहने को मजबूर हैं। बँटवारे में 73 साल बाद भी पाकिस्तानी मुसलमानों के लिए यह समझ पाना कठिन है कि मजहबी बहुतायत के आधार पर स्थापित देश को चुनना ठीक निर्णय था या भारत जैसा एक बहु-रिवाज मुल्क को ठुकराना उनका सबसे बड़ा दोष था, जो भारतीय मुसलमानों क लिए भी एक सबक हो सकता है। यद्यपि भारतीय मुसलमान अल्पसंख्यक हैं, फिर भी वे यहॉं उन सभी लाभों को ले रहे हैं, जो अन्य लोगों को मिल रहे हैं। इस प्रकार भारतीय मुसलमानों को यहॉं के दस्तूर और हुकूम-एक-अदालत में भरोसा रखना चाहिए और सभी वर्गों की बेहतरी के लिए भारत सरकार द्वारा लिए जा रहे फैसले की इज्जत करनी चाहिए।