अनेकता वाला समाज उसे कहते हैं, जहाँ भिन्न–भिन्न मजहवों, जातियों, बोलियों और अलग–अलग रीति–रिवाज वाले लोग साथ–साथ रहते हैं। हालांकि यह परिभाषा पूरी और खालिस नहीं है। वास्तव में अनेकता जीवन के हर पहलू और कुदरत की खुसूसियत है। हर समाज यहाँ तक कि हर परिवार भी अऩेकता की मिसाल है। लम्बी और गहरी सोच से पता चलता है कि हर आदमी और हर औरत अलग–अलग ढंग से सोचते है और उनके जीवन जीने के तरीके भी अपने–अपने है। इसलिए कभी भी आदम जाति के समूहों में चाहे वह एक जैसी सभ्यता और तहजीव वाले हों या भिन्न–भिन्न तहजिवों वाले सुवाद, आदत, विचार, पंसद, नापसंद इत्यादि में भी भारी अंतर बना रहता है। ऐसी स्थिति में यह किया जाना चाहिए कि ऐसे लोग, जो आपस में भिन्न हैं, उनके आपसी समान्य संबंधों को बनाए रखने के लिए आपसी तालमेल और भाईचारा बहुत जरूरी हो जाता है।
2. इन सभी सवालों का जवाब एक ही हैः– मतभेदों को खत्म करना या कम करना भी एक हुनर है, जिसे सभी को अपनाना होगा। बनाने वाले ने कुछ सोच समझ कर ही अलग तरह के लोग बनाए होंगे जिससे की कुदरत ही खुबसूरती और अनेकता बनी रहे। इसके साथ ही उसने हमें इस प्रकार का बनाया कि कोई भी अपने–आप में पूरा न हों और उसे हमेशा दूसरों से जुड़ा महसूस होना होगा। हर एक आदमी और औरत समाज में एक इकाई के रूप में है जिसको कि पूरा समाज एक गुलदस्ता जैसा लगता है। यही कहावत बिल्कुल सही है– ‘आदमी एक सामाजिक इकाई है’, समस्या यह है कि मतभेद कभी–कभी हानिकारक रूप धर लेते है, जिन्हें ज्यादा तवज्जों न देते हैं। मतभेद दूर करने के लिए सभी को कोशिश में लगे रहना होगा ताकि आपसी मुहब्बत टूट न पाए और खिलती तथा बढ़ती रहे। सही मायने में मानवजाति की उन्नति और विकास की जड़ में अनेकता की कोशिशे, पूरी जाति की भलाई के विचार में ही है।
3. मतभेदों को हमेशा सही एंगल में देखे और इसके फायदे ले तब यह नियामत बन जाएगी। खुली बहस और चर्चाएँ आपको पूरे दिमागी विकास की तरफ ले जाएगी और फिर इससे आविष्कार होंगे जो पूरी कुदरत को और अच्छा/मजबूत बनाएँगे।