हिन्दुस्तान के मुसलमान के पिछड़ेपन का एक कारण उनका तालीमी पिछड़ापन भी है। हालांकि सभी मुस्लिम बहुल बस्तियों में मदरसे मौजूद हैं जो मजहवी और पारम्परिक तालीम को ज्यादा तवज्जों देते हैं, लेकिन वे उसमें रोजगारपरक और आज की जरूरतों के हिसाब से पाठ्यक्रम और सामयिक हुनर को शामिल करने में असफल हो जाते हैं। जिसकी वजह से ज्यादातर कमजोर तबके के मुसलमान आधुनिक शिक्षा में पिछड़े हुए होते हैं, जो उन्हें अन्य समुदायों की तुलना में नौकरियों और अन्य उद्यमों में अवसर को भुना सकने में कमज़ोर बना देता है। हालांकि मदरसे लोगों को धार्मिक शिक्षा से जोड़ने के लिए अच्छी सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन यह एक अधूरी उपलब्धि है और इसीलिए इन पाठ्यक्रमों को उपलब्धियों/नौकरियों पर जोर देने के हिसाब से बनाने के लिए कुछ और कोशिश किए जाने की जरूरत है।
2. कभी–कभी कुछ हिन्दुस्तानी मुसलमान अपनी तरक्की न होने के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं, जो कि एक गलत सोच है। कुरान में एक आयत हैः ‘आदमी को सिर्फ वही मिलता है, जिसे पाने के लिए उसने मेहनत की हो (53:39)’। इस आयत से यह मतलब निकाला जा सकता है कि हर व्यक्ति को अपने प्रयासों के अनुसार ही सफलता मिलती है। हिन्दुस्तान के मुसलमान तबके के ज़्यादा पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण है, रोज़गारी/नौकरी देने वाली तालीम नहीं होना। हम सब को मिलकर अपनी कौम को आगे बढ़ाने का काम करना होगा– सही पढ़ाई और अच्छी नौकरी पाकर।