आतंकवाद की इस्लाम में कोई जगह नहीं है और मुसलमानों को इसके विरुद्ध खड़ा होने के लिए इस्लामी दिशा-निर्देशों और हजरत साहब की तालीमों को सख्ती से मानना चाहिए। इसके अनुसार, आतंकवाद पूरी मानवता के लिए एक अपराध है। आतंकवादी मजहबी निर्देशों के प्रति ईमानदार और आज्ञाकरी नहीं है और वे इस्लामी तालीमों के सार को सही ढंग से समझने में नाकाम हैं, इसीलिए वे ऐसे मजहब को बदनाम करने के लिए आमदा हैं जो अमन, सहिष्णुता के लिए प्रतिबद्ध हैं। हजरत साहब ने कहा है कि जो मनुष्य आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होता है, वह मुसलमान नहीं हो सकता बल्कि वह सही रास्ते से भटका हुआ एक मनुष्य है। ये लोग अपने निहित स्वार्थों के अनुसार इस्लाम को परिभाषित करते हैं, अपने अपराधों को न्यायोचित ठहराते हैं और दूसरों को यह कहते हुए ‘काफि़र’ करार देते हैं कि ‘वे इस्लाम का अनुसरण नहीं करते।’
इस्लाम इंतहा पसंदगी के खिलाफ है, इसीलिए यह प्रत्येक सच्चे मुसलमान की जिम्मेदारी है कि वह आतंकवादी और कट्टरवादी विचारधाराओं से बचें, व दूसरों मजहबों के अनुयायियों के प्रति सहिष्णु बनें। सूरा अल-बकरा के अनुसार ‘एक आदमी की जिम्मेदारी अल्लाह के प्रति है और जो भी अल्लाह के बताए गए रास्ते पर चलने को तैयार है उसका इस्लाम में स्वागत है।’
हर मनुष्य को अपने मजहब को अपने अंतर्मन से चुनने की आजादी है जो वह बिना किसी मजबूरी, लालच या दबाव में कर सकता है। प्रत्येक मुसलमान की यह जिम्मेदारी है कि वह इस्लामी दिशा-निर्देशों का पालन करें और अपने भाइयों को सही रास्ते पर चलने के लिए मार्गदर्शन करें ताकि उसे अल्लाह की नेमतें इस दुनिया में और इस दुनिया के बाद भी मिल सके।