इस्लाम ने अल्लाह के हक के साथ-साथ बंदों के हक की भी शिक्षा दी है। बन्दों के हक का अर्थ बन्दों के अधिकारों या दूसरे शब्दों में मानवाधिकार होता है। कुरआन व सुन्नत के अध्ययन से पता चलता है कि इस्लाम ने मानवाधिकारों में विशेषत: जान- माल, इज्जत व आबरू के सुरक्षा पर जोर दिया है और चूँकि मौजूदा दौर में नए संगठन वजूद में आ रहे हैं जो इस्लाम के नाम पर हत्या का माहौल बनाने से बाज नहीं आ रहे।
अल्लाह पाक फरमाता है अपनी जानों को मत हालाक करो बेशक अल्लाह तुम पर मेहरबान है और जो कोई उल्लंघन और अत्याचार से ऐसा करेगा तो हम जल्द ही उसे दोज़ख में डाल देंगे और यह अल्लाह के लिए बिल्कुल आसान है।
तफसीर की किताबों से भी यह बात साफ है कि मुसलमान एक-दूसरे को कत्ल ना करें, क्योंकि रसूलुल्लह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया सारे मुसलमान एक जिस्म की तरह है अगर एक मुसलमान ने दूसरे मुसलमान या गैर मुस्लिम का कत्ल किया तो यह ऐसा ही है जैसे उसने अपने आपकों कत्ल किया। दूसरी तफसीर यह है कि कोई ऐसा काम न करो जिसके परिणाम में तुम हालाक हो जाओ। तीसरी तफसीर में यह बयान हुआ कि इंसानों को अल्लाह पाक ने आत्महत्या करने से मना फरमाया है। रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया जो व्यक्ति हथियार से आत्महत्या करेगा तो दोज़ख में वह हथियार उस व्यक्ति के हाथ में होगा और वह व्यक्ति जहन्नुम में इस हथियार से हमेशा खुद को जख्मी करता रहेगा। इस हदीस से यह पता चलता है कि आत्महत्या करना गुनाह है।