यद्यपि कुरान के नौवें अध्याय, सूरा तौवा से लगभग 24 आयतें जिहाद या कत्ल से संबंधित है, जिनमें से अतिवादियों/आतंकवादियों ने जिहाद के नाम पर हिंसा/हत्या को उचित ठहराने के लिए 4 आयतों का सर्वाधिक दुरुपयोग किया है। कुरान की उक्त 24 आयतें, मक्का पर पैगम्बर की विजय के एक वर्ष बाद प्रकाश में आयी थी, जिनमें पैगम्बर ने काफिरों को हिंसा से दूर रहने तथा युद्ध विराम की चेतावनी दी है। इन आयतों की व्याख्या पवित्र जिहाद के साधन के रूप में हिंसा/हत्या की चर्चा के साथ अभिनिषिद्ध विचारधारा का मुकाबला करने के लिए की गई है। उक्त आयतों का विस्तृत स्पष्टीकरण, इस्लाम के मशहूर विद्धान मौलाना यासीन अस्तर मिसबही की पुस्तक ‘आयत-ए-जिहाद का कुरानी मफहूम/जिहाद की आयतें तथा उनका कुरानसम्मत अर्थ’ में संकलित उनके प्रमाणिक तफसीर पर आधारित ऐतिहासिक परिस्थितियों, प्रासंगिक व्यवस्थाओं/नियमों शाब्दिक भेदों और पारिभाषिक निहितार्थ की पृष्ठभूमि में किया गया है।
जब अपमानित काफिरों ने घोषित किया, ‘हे अली ! अपने भतीजे (पैगम्बर) से कहो कि हमने उनसे की गई प्रतिज्ञा तोड़ दी है। तीरों और तलवारों से युद्ध करने के अतिरिक्त हमारा उनसे कोई करार नहीं है।’ निम्नलिखित तीन आयतों में युद्ध कर रहे नास्तिकों को निष्प्रभावी करने के लिए आस्तिकों हेतु फरमान हैः-
‘और जब पवित्र माह गुजर जाएं, तब जहां कहीं आप बहुदेववादियों को पाएं, उन्हें पकडें, कैद कर लें और उनका कत्ल कर दें। हर स्थान पर घात लगाकर उनका इंतजार करें। परन्तु यदि वे पश्चाताप करते है, प्रार्थना करते है और जकत देते है, तो उन्हें जाने दें। वास्तव में, अल्लाह क्षमाशील और दयालु है (सूरा तौबा.5)
‘उनके साथ युद्ध करें; अल्लाह तुम्हारे हाथों उन्हें दंडित करेगा, अपमानित करेगा और तुम्हें उनपर विजय दिलाएगा। साथ ही आस्तिकों को सुकून प्रदान करेगा।’ (सूरा तौबा-14)’
‘हे अल्लाह पर भरोसा रखने वालों, अपने आस-पास के नास्तिकों से युद्ध करो और उन्हें संकट में डालो और यह जानों कि अल्लाह न्याय के साथ है।’
यह स्पष्ट है कि उक्त आयतें विश्वासघातियों तथा युद्ध के लिए उकसाने वालों के विरूद्ध हैं। तथापि यदि वे पश्चाताप करते हैः ‘हे मेरे प्रिय पैगम्बर, यदि कोई काफिर आपसे शरण माँगता है, तो उसे शरण दें ताकि वह अल्लाह की बातें सुन सके। इसके पश्चात् उसे सुरक्षित स्थान प्रदान करें क्योंकि ये लोग अज्ञानी है।’ (सूरा तौबाः आयत 6) तो इन आयतों में उन्हें क्षमा किया गया है।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि अतिवादी/जिहादी सिद्धांत के लोग, दुष्टतापूर्ण कार्य करने वाले, नफरत फैलाने वाले तथा निर्दोषों की हत्या को जायज ठहराने के लिए कुरान के आयतों की गलत व्याख्या करने वाले लोग होते हैं, जिन्हें किसी खास परिस्थितियों के लिए एवं तदनुसार जीवन जीने के लिए उद्धारित उक्त आयतों के वास्तविक अर्थ का व्यापक प्रचार-प्रसार करके रोका जाना चाहिए।